Wednesday, October 20, 2010

धुल

जलने की परवाह नहीं किया करती मैं...
जल जाऊँगी राख बनने तक...
डरती हु उसके आगे कही आग कम हो जाए तो...
चैन न आएगा महज एक धुल बने हुए...

एक नींद की कहानी....

आज नींद भी नहीं है राजी जागने को...
वो जाग जाये तो मैं ज़रा सो पाऊं...

ख़्वाबों का बिस्तरा लगा है खुली पलकों में...
वो हट जाए तो मैं ज़रा सो पाऊं...

रातें-सुबहें आती है, जाती है यूँ बार बार...
वो थम जाए तो मैं ज़रा सो पाऊं...

मेरे होठों पे कोई गीत सुन रहा है खुद ही को...
वो थक जाये तो मैं ज़रा सो पाऊं...

एक इंतज़ार सा शायद हो रहा है खिड़की पे...
वो ख़त्म हो जाये तो मैं ज़रा सो पाऊं... 

दूर से, कही से, जो देखे जा रहा चाँद मुझे.... 
पास बुला ले वो मुझे, तो मैं ज़रा सो पाऊं...

सितारें ये सारे जो टुकुर टुकुर देख रहे है ये सब...
सुबह ये घर चले जाये, तो मैं ज़रा सो पाऊं....

नींद को कहें, आज हम उनपे मेहरबान है....
जितना वक्त चाहे उतना ले ले... 
कल जब आएँगी वो, तो फिर जा नहीं सकती... 
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